कफ, जल और पृथ्वी तत्व से बना है इसलिये भारी, अस्थिर और आर्द्र होता है। इसके साथ ही कफ शरीर को शक्ति शाली बनाता है, तथा ऊर्जा भरने का काम करता है। कफ में स्थायित्व का गुण होता है। इस्लिये जो व्यक्ति कफ की प्रकृति वाले होते हैं वे काफी धैर्यशील होते हैं। कफ शरीर के सभी अंगों के लिये आवश्यक चिकनाई का निर्माण करता है। कफ शरीर के सभी ढांचागत अंगों को एक दुसरे से बांये रखता है, यह मानसिक शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ रोग निरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। जो व्यक्ति भोजन में अत्यधिक मात्रा में मीठे, नमकीन, खट्टे या ठंडे पदार्थ लेते हैं उनका कफ असंतुलित हो जाता है। कफ असन्तुलित होने से खाँसी, ज्वर, शरीर दर्द, सुस्ती, मोटापा, अपच आदि रोग फैलते हैं, इस प्रकार यदि हम वात, पित्त और कफ के बारे में सावधान रहें और उनके विरुद्ध न चले तो कम से कम बीमार पडेंगे।
प्रकृति के विरुद्ध जाने के कारण ही हम बीमार पड़ते हैं हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के नियम और शरीर की संरचना के अनुसार स्वस्थ जीवन जीने के कुछ नियम बनाये हैं, यदि हम उनका पालन नहीं करेंगे तो निश्चित रूप से बीमार पड़ेंगे। जैसे खाने-पीने के नियम बनायें है वैसे ही आचार और विचार के नियम भी बनाये हैं। हम लोग अधिकांशतः खान-पान के नियमों का पालन करते ही नहीं हैं और गलत तरीके से पोषण प्राप्त करते हैं, और ऐसी गलतियाँ बार-बार और लगातार होती रहती हैं। जैसे यदि हम भोजन करते हैं तो या तो स्वाद की वजह से अधिक भोजन कर लेते हैं या स्वाद न होने से कम भोजन करते हैं। दोनों ही स्थितियाँ हानिकारक है यदि अधिक भोजन करते हैं तो उसे पचने में देर लगती है तथा आमाशय में गड़बड़ी पैदा होती है और इसलिये सही ढंग से पाचक रस नहीं बन पाते हैं और भोजन सही ढंग से नहीं पच पाता। अन्ततः वह पढ़ना शुरू हो जाता है। आगे चलकर यह सड़ा हुआ भोजन पाचन संस्थान में कई प्रकार के जहर बनाने का काम करता है। इसके बाद यह भोजन
छोटी आंत में पहुंचता है और वहाँ से स्वास्थ के लिये अनुकूल तत्व चुन-चुन कर शरीर में चले जाते हैं और विषैले तथा विजातीय तत्व वहीं रहजाते हैं। अब यदि मल संस्थान अच्छे काम करता है तो यह तत्व मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं अन्यया वहीं एकत्र रहकर शरीर में विष को बढ़ाते हैं। शरीर के अन्य अंग जैसे फेफड़े, गुर्दे, यकृत, आते इन विषों को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं और शरीर इनको अपने ढंग से संतुलित करने की कोशिश भी करता है लेकिन इस तरह के निकले और विजातीय तत्व यदि बहुत अधिक मात्रा में बनते हैं तो सफाई करने वाले इन अंगों को बहुत अधिक श्रम करना पड़ता है। अधिक श्रम करने की हालत में कभी-कभी यह अंग खराब भी हो जाते हैं, और उसका बड़ा नुकसान हमारे शरीर को बाना पड़ता है। अब यदि हमारे यह अंग विजातीय तत्वों को सही ढंग से बाहर नहीं निकालते तो यह विजातीय तत्व शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग पैदा करते हैं। इसलिये भोजन के मामले में हमें अत्यधिक सावधान रहने की जरूरत है।
इसके अलावा शरीर की क्षमता से अधिक मेहनत या मानसिक परिश्रम करने से भी बीमारियां होती हैं। क्षमता से अधिक श्रम करने से हमारे शरीर के तंतू कोश अधिक मात्रा में टूटने लगते हैं इस कारण शरीर में कमजोरी आती जाती है और इस कमजोरी के कारण कभी भी किसी भी तरह की वायरलबीमारियाँ हो
सकती हैं।
नींद की कमी के कारण भी काफी बीमारियां होती हैं। जिस प्रकार भोजन से हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है उसी प्रकार अच्छी नींद से भी हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है। अच्छी नींद के कारण हमारे शरीर में जो स्फुर्ति आती है उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जब हम सोते हैं तब हमारे शरीर के सभी अंग बराबर काम करते रहते हैं। लेकिन विश्राम की अवस्था के कारण उन्हें अत्यधिक श्रम नहीं करना पड़ता और उन्हें रक्त का पोषण पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है जिससे हमें स्फूर्ति का अनुभव होता है, और यदि हमें अच्छे ढंग से नींद नहीं आती तो शरीर के अंदर से सभी अंगों को पर्याप्त मात्रा में रक्त का पोषण न मिलने से ऊर्जा नहीं मिल पाती और तंतु में विष इकट्ठा होता रहता है। और यही विष बीमारी का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त इर्ष्या, द्वेष, चिंता, क्रोध आदि भावनाओं की वजह से भी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। अत्यधिक व्यसन जैसे तंबाकु, शराब, बीडी, सिगरेट आदि से भी बीमारियाँ पैदा होती हैं क्योंकि इनके सेवन से विष अधिक बनता है।
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