रस 6 प्रकार के होते हैं :
- मधुर (मीठा),
- अम्ल (खट्टा),
- लवण (नमकीन),
- तिक्त (तीखा),
- उष्ण (कटु अथवा कडुवा) और
- कषाय जो भी द्रव्य या वस्तु होती हैं, उनमें 6 रस होते हैं सभी द्रव्यों (वस्तुओं) की उत्पत्ति पंचमहाभूतों से होती है .
पंच महाभूतों को अर्थ है :- पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि ।
मधुर (मीठा) रस की उत्पत्ति पृथ्वी और जल से होती है। शरीर का सबसे अधिक पोषण इसी रस होता है पृथ्वी और जल नहीं हो तो कोई भी वस्तु उत्पन्न नहीं हो सकती है शरीर का पोषण और वृद्धि में मधुर रस का सबसे अधिक योगदान होता है। शरीर की वृद्धि और पोषण में वायु, अग्नि और आकाश का भी योगदान होता है। मधुर रस को छोड़कर अन्य सभी रसों में वायु अग्नि और आकाश की प्रधानता होती है। वायु एवं अग्नि को शोषक माना जाता है और आकाश को शून्य माना जाता है, इसलिये शरीर की पूरी वृद्धि वायु, अग्नि और आकाश से संभव नहीं है। शरीर का पूर्ण विकास के लिये पृथ्वी और जल तत्व की बहुत जरूरत होती है। लेकिन वायु के द्वारा शरीर में गति होती है, जिससे रसों का शोषण होता है। अग्नि के द्वारा शरीर में पाचन होता है शरीर में शून्य छिद्रयुक्त स्त्रोतों द्वारा प्रसार होता है पाचक द्रव्यों का। किसी भी बीज की उत्पत्ति के लिये सबसे पहले पृथ्वी और जल तत्व की जरूरत होती है। फिर जरूरत होती है आकाश तत्व की। उसके बाद जरूरत होती है वायु तत्व की और अन्त में अग्नि तत्व की। अतः इन पंच महाभूतों से बने हुये सभी रस अत्यन्त ही महत्वपूर्ण होते हैं ।
मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा) और नमकीन ये तीनों रस वात (वायु) के दोष को कम करते हैं।
तीखा (तिक्त), कटु (कड़वा) और उष्ण रस, कफ दोष को शान्त करते हैं।
कषाय, तिक्त और मधुर रस पित्त को शान्त करते हैं।
इसके विपरीत तिक्त उष्ण और कषाय रस वायु वात) में वृद्धि करते है।
मधुर, अम्ल और लवण कफ में वृद्धि करते है।
अम्ल, लवण, उष्ण (कटू) पित्त की वृद्धि करते है।
कुछ द्रव्य ऐसे हैं जो दोषों का दमन करते हैं। वहीं कुछ द्रव्य ऐसे है जो दोषों का प्रभाव बढ़ाते हैं। कुछ ऐसे भी द्रव्य जो शरीर के स्वास्थय को सम्यक रखते हैं। स्वभाव से कुछ द्रव्य लाभकारी और कुछ हानिकारक होते हैं। लेकिन सभी द्रव्य मनुष्यों की प्रकृति के अनुसार ही लाभ या हानि
द्रव्यों का विपाक (जठराग्नि द्वारा पाक होने पर बना रस) मधुर (मीठा), अम्ल और कटु ये तीन प्रकार का होता है।
द्रव्यों का जठराग्नि द्वारा पाक होने पर जो रस बनता है उसे विपाक कहते हैं। द्रव्यों में रस 6 होते हैं। मधुर और लवण रसों का विपाक मधुर होता है। अम्लीय रस का विपाक भी अम्ल होता है। कटु, तिक्त, कषाय का विपाक कटु होता है।
No comments:
Post a Comment